पहली बार क़तरी टीवी चैनल अलजज़ीरा ने 14 जुलाई को अलक़ाएदा के साथ बहरैन के गुप्तचर विभाग के बीच 2003 में हुए सहयोग की गुप्त योजना का पर्दाफ़ाश किया। वास्तव में बहरैनी शासक शैख़ हमद बिन ईसा आले ख़लीफ़ा के आदेश से अलक़ाएदा के एक सरग़ना मोहम्मद सालेह की अगुवाई में एक डेथ स्कवाएड का गठन हुआ। मोहम्मद सालेह उस समय सऊदी अरब में जेल में बंद था लेकिन सऊदी शासन ने बहरैनी शासक के निवेदन पर उसे छोड़ दिया। ख़ुद इस बारे में मोहम्मद सालेह ने कहा था कि सऊदी अरब में जेल मिली रिहाई के बाद जब बहरैन पहुंचा तो इस देश के शासक ख़ुद उसके स्वागत के लिए आए थे।
आले ख़लीफ़ा शासन का यह क़दम कई आयाम से युद्ध अपराध की श्रेणी में आता है।
पहले यह कि एक देश की सरकार के अलक़ाएदा जैसे आतंकवादी गुट से संबंध साबित होता है जिसे संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद ने आतंकवादी गुट की लिस्त में रखा था। बहरैनी शासन का यह क़दम सरकारी आतंकवाद की मिसाल है।
दूसरे यह कि कि बहरैनी शासन एक डेथ स्वाएड के ज़रिए अपने ही देश के नागरिकों की हत्या करना चाहता है। वे नागरिक जो धार्मिक दृष्टि से शिया और इस देश में बहुसंख्यक हैं। आले ख़लीफ़ा शासन का यह क़दम सांप्रदायिकता को बढ़ावा देने की मिसाल है और इससे यह भी पता चलता है कि आले ख़लीफ़ा अपने सांप्रदायिक लक्ष्य के लिए हत्या करवाता है।
तीसरे यह कि बहरैनी शासन ने यह डेथ स्कवाएड 2003 में गठित किया अर्थात आले ख़लीफ़ा शासन ने इस देश में सुधार कार्यक्रम के लिए राष्ट्रीय घोषणापत्र पारित करने के दो साल बाद यह क़दम उठाया। इस घोषणापत्र को शासक हमद बिन ईसा ने 2002 में निरस्त कर दिया और इसके एक साल बाद बहरैनी शासक ने शिया नेताओं की हत्या की योजना बनायी। दूसरे शब्दों में बहरैन में राष्ट्रीय घोषणापत्र के दो साल बाद नेताओं की हत्या की योजना शुरु हुयी जिससे पता चलता है कि इस देश में विरोधियों के साथ उदारता नहीं दिखायी जाती बल्कि उन्हें हत्या के ज़रिए रास्ते से हटाया जाता है। विरोधियों के साथ हिंसक व्यवहार पिछले 9 साल से नहीं बल्कि बहुत पहले से जारी हैं।
जिस तरह आले ख़लीफ़ा शासन के अमरीका सहित पश्चिमी शक्तियों के साथ संबंध हैं उससे नहीं लगता कि आले ख़लीफ़ा शासन इन अपराधों के संबंध में उत्तरदायी होगा जिस तरह वह पिछले 9 साल से आंतरिक आलोचकों के ख़िलाफ़ अपराध पर चुप्पी साधे हुए है।